शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019

तार्रुफ़









तार्रुफ़ 

बंदा एक लफ्ज नहीं  एक तार्रुफ़ है 
खुदा के बनाये सब बुतों के लिए। 
ये बुत बनाया है उसने  इस तार्रुफ़ के साथ 
बंदगी के लिए। 

बंदा फक्त लफ्ज रह गया है आज  
खुदा के वास्ते कोई तो इसका  इससे तार्रुफ़ करवाए 
मकबूलियत की ख्वाहिश को छोड़ नामाकूल 
बंदा बन और बंदगी कर 
अपने तार्रुफ़ के लिए।   
 


चस्का - ए - शोहरत


चस्का - ए - शोहरत 

दुनिया के मयकदे में मैं भी गया करने एहतराम मयकदे का
हर शख्स बेहोश था मयकदे में
 पी  कर जाम शोहरत का। 
हर तरह की मय उड़ेली जा रही थी पर इन्तजार सबको एक ही था 
कब मिलेगा 
वो जाम शोहरत का। 

मैंने भी चाहा कि क्यों न रुसवाईयों का दामन छोड़ कर चख लूँ ,
जायका जाम -ए - शोहरत का,
सबके हाथों  में पैमाने देखे उसूलों के
 जिन्हेँ दिखा दिखा कर सब 
ढाल रहे थे जाम उसमें शोहरत का। 

उन पैमानों से छलकती शोहरत की मय और वो मदहोश मंजर देख, 
दुनिया के मयकदे में
 एक जाम मैंने भी पीना चाहा,
शोहरत का। 

जैसे ही अपने जमीर को मार कर  
मैंने अपने उसूल को पैमाने की शक्ल दी 
पैमाना मुझसे बोला 
क्यों बेग़ैरत  होता है मेरे अज़ीज़, 
मुर्दों की इस भीड़ में मुझे ज़िबह  कर 
तुझे कुछ हासिल न होगा ,
पहले जा कर देख क्या क्या खो दिया
 इन सब ने इस मदहोशी के लिए,
फिर चाहे चख लेना जायका,
 जाम  - ए - शोहरत का। 

तन्हा रह कर ही तू रूह के सकून  को पा सकेगा वक्त है, 
अभी भी, 
रूसवा रह दुनिया में ,
वरना, 
तुझसे तुझ को ही छीन लेगा एक दिन  ये  चस्का 
जाम -ए -शोहरत का। 


गुरुवार, 5 दिसंबर 2019

स्वाह होते सवाल



स्वाह होते सवाल 

घर के पिछवाड़े में एक शाम अख़बार का अंतिम संस्कार किया
 मैंने,
उन नारंगी लपटों में काले स्याही से लिखे सवालों को जलते देखा
 मैंने,
आज के बाद इन सवालों ली कोई पहचान नहीं होगी ऐसा सोचा था
 मैंने, 
गलत था मैं, 
लपटों में जल कर भी राख के ढेर बने  पन्नों पर सवालों को  उभरते देखा 
मैंने,
जाने इन बरसों में मेरे भीतर की ज्वाला में कितने सवाल स्वाह  किये
 मैंने
पर समझ में आज आया अपनी कुंठा का  सच जब  स्वाह  होते सवाल राख के ढेर में 
उभरते देखे मैंने 
भीतर की अग्नि में चाहे जो भी जला डालो पर कर्मों की स्याही से लिखा सच जल कर 
भी उभरते देखा मैंने
अंतर्  केवल इतना था कि  कुछ देर पहले छूने से वो बिखरते नहीं थे परन्तु अब 
हवा से भी बिखरते देखा मैंने 

  

  

बुधवार, 4 दिसंबर 2019

मानव समाज का एक वीभत्स सच







एक बार फिर उभरा वो दानव जो सदियों से मूल्यों की खोखली दलीलों पर मर कर जी उठता है।             
   बलात्कार 

मानव समाज का एक वीभत्स सच 



आज फिर एक बेटी किसी रावण के द्वारा हरण की गयी फ़र्क़ इतना था कि वो सीता नहीं थी अन्यथा शायद उसका तप उसे बचा पाता। किसी भी धर्म  की मान्यताओं को उठा कर देख लें सभी धर्म नारी सम्मान व् नारी सुरक्षा के मूल्यों का परिभाषित करता है। हम भारतीय संस्कृति में जीने वाले और सर्वोच्च आदर्श को अपनाने का दम भरने वाले, हम मर्यादा पुरुषोतम राम को अपना आदर्श मानने  वाले  अगर नारी को सम्मान अथवा स्वतंत्रता न दे पाएं तो शायद हमें अपने आदर्श पुरुष के प्रति हमारी निष्ठां तथा आस्था पर एक बार अवश्य सोच लेना चाहिए।

 कोई भी जो कोई इस्लाम,हिन्दू,सिख,बौद्ध ,जैन,ईसाई किसी भी धर्म में आस्था क्यों न रखता हो सबको एक बात अवश्य समझ में आ जानी  चाहिए कि  बिना नारी के पुरुष अस्तित्व ही नहीं ले सकता। आखिर किस संस्कृति अथवा खुलेपन अथवा स्वतंत्रता की बात करते हैं। 

समाज कमजोर हो गया है हमारा यहाँ बलात्कार को भी हम लोग धीरे धीरे स्वीकार करते जा रहें हैं, हम समाज में ही आवाज उठाने से डरते हैं हम नपुंसकता की ओर जा रहे हैं जहाँ केवल बेचारगी है आंदोलन नहीं। हम केवल ये सोच कर जी रहें हैं कि मेरी बेटी सुरक्षित है या फिर मेरे बेटी ही नहीं है। परन्तु ये सत्य नहीं है कभी भी आप  इस रावण का शिकार अवश्य होंगे अगर आंदोलित न हुए तो। 

बाकि रही सत्ता की बात वो कोई भी विचारधारा की क्यों न आ जाये उनमें बलात्कारियों को टिकट मिलते रहेंगे और हम भी नपुंसकता की मानसिकता लिए तथाकथित  विचारधारा से जुड़े होने के कारण विरोध न कर के उन्हें विजयी बना  कर उनसे न्याय की उम्मीद भी लगाते रहेंगे। 

 जब तक हम स्व आंदोलित हो कर निर्णय नहीं करेंगे तब तक न जाने कितनी बार ये रावण कितने ही कुम्भकर्णों ,मारीचों, सुबहुओं , ताड़काओं ,शूर्पणखाओं, के सहारे न जाने और कितनी बार नारी का अपमान करेगा। 

  
''या तो नारी को देवी का दर्जा देना बंद करो या फिर नारी सम्मान के लिए आंदोलित  हो'' 

याद रखें नारी माँ होती है और जिसका कोई जाती या धर्म नहीं होता 


शनिवार, 23 नवंबर 2019

बाबर क्यों नहीं चाहिए भारत में ? या कहें पूरे विश्व में ?

बाबर क्यों नहीं चाहिए भारत में ?
या कहें पूरे विश्व में ?


भारत में मुग़ल शासन की नींव रख कर इतिहास में एक अलग तरह की पहचान बनाने वाले इस शख्श  को जानने के लिए हमें इतिहास के पन्ने   अवश्य पलट लेने   चाहिए।  इसलिए नहीं की बाबर एक व्यक्ति विशेष था  इसलिए कि बाबर एक सोच है एक ऐसी सोच जिस के बारे में जानना और समझना हिन्दू और मुसलमान दोनों ही धार्मिक मान्यताओं के लोगों के लिए आवश्यक है।  किसी भी व्यक्ति का व्यक्तित्व उसके अन्तःकरण में बोये गए संस्कारों के बीज के कारण  होता है ये संस्कार परिवार,समाज तथा देश काल  के कारण उपजता है और जिसकी स्थापना  वो अपने शेष जीवन में संसार में स्थापित करने में अपनी ऊर्जा को लगाता है। 

भारत  में बाबर और मुग़ल साम्राज्य में हुई सांस्कृतिक चोट तथा यहाँ के समाजिक ढांचे में किये गए अत्याचार के फलस्वरूप बाबर एक खलनायक की तरह है। 
कारण सदैव एक ही रहा है 
सत्ता के प्रति आकर्षित  हर व्यक्ति हर उस शक्ति का प्रयोग करता है जो उसके सत्ता पर पहुँचने तथा बने रहने के लिए आवश्यक हो। 
जिसमें रक्त की शुद्धता,नस्ल की सर्वोच्चता , विचारों की असमानता , अथवा आर्थिक सुदृढ़ता, धार्मिक असहिषुणता  इत्यादि जैसे कई विचार सहायक रहते हैं जो की अपनी सर्वोच्चता को सिद्ध करने के लिए उपयोग में लाये जाते है। 
यद्द्यपि धर्म का मूल सिद्धांत एक ही है वस्तुतः टकराव मान्यताओं का है जो की समाज में एक तरह के नियम अथवा उपनियम पैदा करते हैं और जिनको मानना ही सामाजिक व्यवहार में आवश्यक होता है पहचान के लिए।  इन्हीं धार्मिक मान्यताओं के कारण ही किसी भी समाज के  आर्थिक,राजनैतिक तथा सामाजिक नियमों का जन्म होता है। 

समाज को धर्म का मूल सिद्धांत  समाज के होने के लिए केन्द्र में होता है पर समाज मान्यताओं में बंधा उसके विपरीत निर्वाह करता हुआ अनेक लोगों को मान्यतों के आधार पर पीड़ित करने का कारण है।  ये मान्यताएं विपरीत हों तभी अत्याचार का कारण बनेंगी ऐसा नहीं है बल्कि अपनी ही मान्यताओं में भी लोग एक दूसरे पर अत्याचार करते हैं 

कारण फिर भी एक ही है सर्वौच्चता। 

बाबर को जानने से पहले हमें चंगेज़ खान और तैमूर लंग के बारे में जानना चाहिए क्यूंकि बाबर जैसी सोच के जन्म लेने के लिए उस सोच को भी जानना जरूरी है जिसने बाबर को जन्म दिया। 

तब कहीं हम सब ये जान पाएंगे की बाबर भारत अथवा पूरे विश्व में क्यों नहीं चाहिए। 

मेरा प्रयास है की हम किसी ऐसी सोच को जन्म न दें जिससे मानव समाज की हत्या हो बल्कि ऐसी समझ को जन्म दें जिससे हम अपने भीतर के धर्मक्षेत्र का विकास करे और कुरुक्षेत्र के कौरव केवल उस विचारधारा के शंखनाद से ही भयभीत हो। 

अगर भारत में आप चाहते  हैं की चर्चा हो तो विचार के ध्रुवीकरण के लिए न हो कर सहमति से स्वीकार करने के लिए हो। 

यह एक श्रृंखला बद्ध अभिव्यक्ति है जो प्रतिदिन डालता रहूंगा आपको अगर अच्छा लगे और चाहें की सबको तथ्य का पता चले तो कृपया शेयर करें।  

चल मेरे साथ ही चल .......4


चल मेरे साथ ही चल 




पिछले लेख में हमने जाना  कि गीता  है क्या ?
जीवन संग्राम में शाश्वत विजय का क्रियात्मक प्रशिक्षण है

शस्त्रों से लड़े  गए किसी भी युद्ध में शाश्वत  विजय नहीं मिलती 
गीता में शस्त्रों से युद्ध से पहले अन्तःकरण के युद्ध की बात 

ये संघर्ष होता कहाँ है , स्थान कहाँ है ?
ये स्थान हमारे अंतःकरण में है जैसा अन्तःकरण में संघर्ष  है वो ही शारीरिक क्रिया से संसार में परिलक्षित होता है और हमारे लिए क्रियात्मक फल का स्वरुप बनता और बांधता है
ये शरीर ही क्षेत्र है।
ये शरीर ही क्षेत्र है जिसके अन्तःकरण में  धर्मक्षेत्र तथा कुरुक्षेत्र का निर्माण होता 
और शारीरिक क्रिया से ये ही धर्म क्षेत्र तथा कुरुक्षेत्र का निर्माण मनुष्य संसार में करता है ये ही जीवन के सुख दुःख का निर्माण करता है 

 प्रश्न है की अगर ये शरीर ही क्षेत्र है तो मनुष्य योनि में रह कर इसके निवारण का रास्ता क्या है ? जिस पुण्य को हम करते हैं फिर भी वो पुण्य हमारे विरोध में क्यों है अर्थात बंधन  बांधता है ? आखिर मनुष्य  अपने सनातन स्वरुप अर्थात आत्मा अथवा परमात्मा को क्यों नहीं देख पाता ?
योगेश्वर कृष्ण गीता में स्पष्ट करतें हैं की अंतःकरण की दो प्रवृतियां पुरातन हैं देवी सम्पद तथा आसुरी सम्पद। 

दैवी सम्पद में हैं  -  पुण्य रूपी  पाण्डु तथा कर्तव्य रूपी कुन्ती 
पुण्य जागने से पहले मनुष्य जो कुछ भी कर्तव्य समझ करता है, वह अपनी समझ से कर्तव्य ही करता है परन्तु वो कर्तव्य होता नहीं , क्यूंकि पुण्य के बिना कर्तव्य समझ आता  नहीं। 
कुंती ने पाण्डु से सम्बन्ध होने से पहले जो कुछ भी अर्जित किया वो था कर्ण।
कर्ण आजीवन कुंती के पुत्रों से लड़ता रहा। वही पांडवों का सबसे  भीषण शत्रु है। 
विजातीय कर्म ही कर्ण है जो बंधनकारी है अर्थात इस में परम्परागत रूढ़ियों चित्रण ही कर्ण हैं 
पूजा पद्धतियां पीछा नहीं छोड़ती जो की हमारे साथ पूर्वजों की सम्पति की तरह आती हैं पूर्वजों की संपत्ति तो आप बेच कर अन्यत्र जा सकते हैं पर दिमाग में बैठी रूढ़ियों से अलग नहीं हो सकते 
योगेश्वर कृष्ण समझते  हैं की पुण्य जागृत होने से मनुष्य में 
धर्म रुपी युधिष्ठिर , अनुराग रूपी अर्जुन , भाव रूपी भीम , नियम रूपी नकुल तथा सत्संग रूपी सहदेव, सात्विकता रूपी सात्यिकी , तथा मानव काया में सामर्थ्य रूपी  काशिराज  इत्यादि आत्मा अथवा परमात्मा की ओर ले जाने वाली  मानसिक प्रवृतियों का जन्म होता है जिनकी गणना सात अक्षौहिणी है। 

अक्ष का अर्थ दृष्टि है सत्यमयी दृष्टिकोण का जिससे गठन है उसे दैवी सम्पद कहते हैं  

अर्थात आत्मतत्व अथवा परमधर्म परमात्मा तक की दूरी तय करने के लिए ये सात सीढियाँ अथवा मनुष्य योनि की सात भूमिकाएं हैं न की कोई गणना है।  वैसे ये प्रवृतिया अनंत हैं।

और योगेश्वर कृष्ण अंतःकरण के इस युद्ध में इन्हीं के साथ खड़े उनके मार्गदर्शक बने हैं। 








शुक्रवार, 22 नवंबर 2019

बाबर की भारत में मौजूदगी क्यों नहीं चाहिए ?

बाबर की भारत में मौजूदगी क्यों नहीं चाहिए ? 
एक दुर्दांत और वहशी शासन व्यवस्था का परिचायक है 
परन्तु भारतीय मुसलमान को भी ये समझना आवश्यक है कि  
उन्हें इस्लाम को बाबर से जोड़ कर नहीं 
देखना चाहिए 
क्यों ? 
इसके लिए आप सबको मेरे इस ब्लॉग को पढ़ते रहें 


तैमूर लंग  १५ लाख लोगों का हत्यारा दुनिया की ५ % आबादी केवल दिल्ली में १ लाख लोगों की हत्या  कारण  इस्लाम का प्रसार और धर्म परिवर्तन 
                                                                                                                                                                           





  बाबर तैमूर लंग के बाद का ६ शासक भारत में मुग़ल साम्राज्य का जनक लाखों हिन्दुओं को मारने  तथा धर्म परिवर्तन करवाने वाली शासन व्यवस्था का जनक








आप को इन तीनों के बारे में तथा इनके बीच के सम्बन्ध  में जानना आवश्यक है
न केवल हिन्दुओं के लिए बल्कि मुसलमानों के लिए भी  

गुरुवार, 21 नवंबर 2019

चल मेरे साथ ही चल ....... 3



चल मेरे साथ ही चल 


कल हम बात क्र रहे थे उन १८ बिंदुओं की जिन का   योगेश्वर कृष्ण ने गीता के १८ अध्यायों में वर्णन किया है।  

हमारा अर्थात जीव का गीता में स्थान क्या है ये जान लेना आवश्यक है क्यूंकि गीता ज्ञान का प्रसारण मानव मात्र के लिए किया गया है।  

ये जानना भी आवश्यक है कि गीता है क्या ?

गीता जीविका संग्राम नहीं है अर्थात गीता का ज्ञान इसलिए नहीं की ये  जीविका अथवा संसार के भौतिक सुखों को पाने के लिए है संग्राम का साधन है अपितु जीवन संग्राम में शाश्वत विजय का क्रियात्मक प्रशिक्षण है  इसी लिए यह युद्ध ग्रन्थ है  जो वास्तविक विजय दिलाता है। 
गीता शस्त्रों से लड़ा जाने वाला सांसारिक युद्ध नहीं है 

शस्त्रों से लड़े  गए किसी भी युद्ध में शास्वत विजय नहीं मिलती 

ये सद्सत वृतियों अर्थात सद्गुणों तथा दुर्गुणों  का  संघर्ष है जिनके रूपात्मक वर्णन की परम्परा रही है 
वेदों में इंद्र तथा वृत्र संघर्ष वर्णन,विद्द्या अविद्द्या का संघर्ष , पुराणों में देवासुर संग्राम , महाकाव्यों में  राम रावण युद्ध , कौरवों पांडवों का संघर्ष को ही गीता में धर्मक्षेत्र और कुरुक्षेत्र , देवीय सम्पदा तथा आसुरी सम्पदा , सजातीय एवं विजातीय , सद्गुणों एवं दुर्गुणों का संघर्ष कहा गया है। 

ये संघर्ष होता कहाँ है , स्थान कहाँ है ? 

गीता का धर्म क्षेत्र और कुरु क्षेत्र कोई भूभाग नहीं बल्कि स्वयं गीतकार अर्थात योगेश्वर कृष्ण के शब्दों में ---
'' इदं शरीरं कौंतये क्षेत्रमित्यभिधीयते। ''

'' कौंतये अर्थात अर्जुन ! ये शरीर ही एक क्षेत्र है, जिसमें बोया हुआ भला बुरा बीज संस्कार रूप से सदा उपजता है दस इन्द्रियां , मन,बुद्धि,चित,अहंकार,पांचों ज्ञान इन्द्रियां ,और तीनो गुणों का विकार इस क्षेत्र का विस्तार है।  प्रकृति से उत्प्न्न इन तीनों गुणों राजस,तमस,सात्विक से विवश हो कर मनुष्य को कर्म करना पड़ता है।  वह एक क्षण भी कर्म किये बिना नहीं रह सकता। ''
यही कुरुक्षेत्र है क्यूंकि कुरु का अर्थ है करो जो की प्रकृति से प्रेरित है   
जब मनुष्य परमधर्म परमात्मा की ओर अग्रसर होता है तो ये धर्मक्षेत्र बन जाता है 

ये शरीर ही क्षेत्र है। 

मनुष्य योनि  है क्या इस का वर्णन योगेश्वर गीता में देते है तथा मनुष्य योनि का महत्व एवम  हमारे दुखों का कारण इस संघर्ष की देन मात्र हैं। 


बुधवार, 20 नवंबर 2019

चल मेरे साथ ही चल ----- 2





चल मेरे साथ ही चल 



कल बात कर रहे थे की बिना वैराग्य के विवेक का ज्ञान नहीं हो सकता 

वैराग्य का अर्थ सामान्यतः ये लगाया जाता है की सब कुछ का त्याग वस्तुतः ऐसा नहीं है इसका अर्थ है जो  हमें बांधे  रखता है उससे आसक्ति न होना अर्थात उसे  अपने से जुड़ा न जान   कर एक क्रिया के रूप में देखना  और उससे उत्पन्न हर परिस्थिति अथवा वस्तु तो प्रतिक्रिया रूपी फल के रूप में देखना !

जब ये जान जाओगे की कौन सी क्रिया की प्रतिक्रिया से कौन सा परिणाम अर्थात फल मिल रहा है तथा  उसके अनुसार मानव मूल्यों का प्रयोग कर  निर्णय करना ही विवेक है 

वैराग्य और विवेक के लिए मानव मूल्यों का जान लेना आवश्यक है 

ये अवश्य जाने मनुष्य योनि को जानने के लिए 
  1. सत्य ....... केवल आत्मा सत्य है 
  2. सनातन ...... केवल आत्मा सनातन  है और परमात्मा सनातन  है 
  3. सनातन धर्म ......  परमात्मा से मिलाने वाली क्रिया हैं 
  4. युद्ध ....... दैवी तथा आसुरी सम्पदाओं का संघर्ष युद्ध है ये अन्तःकरण की दो प्रवृतियां हैं 
  5. युद्ध स्थल ...... यह मानव शरीर और मन सहित इन्द्रियों का समूह युद्धस्थल है 
  6. ज्ञान ...... परमात्मा की प्रत्यक्ष जानकारी ज्ञान है 
  7. योग ....... संसार के संयोग वियोग से रहित अव्यक्त ब्रह्म अर्थात परमात्मा से मिलान का नाम योग है 
  8. ज्ञानयोग .......  आराधना ही कर्म है। अपने पर निर्भर हो कर कर्म करना ज्ञान योग है
  9. निष्काम योग........ इष्ट पर निर्भर हो कर समर्पण के साथ कर्म करना निष्काम योग है 
  10. यज्ञ। ........ साधना की विधि का नाम ही यज्ञ है 
  11. कर्म। ....... यज्ञ को कार्य रूप देना ही कर्म है 
  12. वर्ण। ...... आराधना की एक ही विधि है जिसका नाम कर्म है जिसको चार श्रेणियों में  गया बांटा है वही  चार वर्ण हैं।  यह एक ही  साधक का ऊंचा नीचा स्तर है न की जाति 
  13. वर्ण संकर। ....... परमात्म पथ से च्युत अथवा दूर होना , साधन में भ्रम उतपन्न हो जाना वर्णसंकर है 
  14. मनुष्य की श्रेणी। ....... अन्तः करण के स्वभाव के अनुसार मनुष्य दो प्रकार के हैं एक देवताओं जैसा , दूसरा असुरों जैसा।  ये ही मनुष्य की दो जातियां हैं, जो स्वभाव से निर्धारित हैं और स्वभाव घटता बढ़ता रहता है 
  15. देवता। ....... हृदय देश में परमदेव का देवत्व अर्जित करवाने वाले गुणों का समूह 
  16. अवतार। ...... मनुष्य के हृदय में होता है बाहर नहीं 
  17. विराट दर्शन। ...... योगी के हृदय में ईश्वर के द्वारा दी गयी अनुभूति है भगवन साधक में दृष्टि बन कर खड़े हों तभ दिखाई देते हैं
  18. पूजनीय देव अथवा इष्ट...... एकमात्र ब्रम्ह ही पूजनीय देव हैं और उन्हें खोजने का स्थान हृदय देश 
'' योगेश्वर कृष्ण द्वारा कहे गए शब्दों से ये ज्ञान प्रसारित हुआ है जो की मानव जीवन के महत्व तथा मनुष्य योनि में जीव की भूमिका तथा कर्म को समझाता है

आगे हम इसी पर चर्चा करेंगे की योगेश्वर के ये शब्द किस तरह से हमारे भौतिक जीवन से अध्यातिक जीवन की और लेजाने की एक प्रक्रिया है तथा शाश्वत विजय ,शाश्वत संतोष , शाश्वत शांति का रास्ता प्रदान कर के मानव योनि का रहस्य बताते हैं 
 



मंगलवार, 19 नवंबर 2019

चल मेरे साथ ही चल ........ अगर आप सोचते हैं की जीवन में मैं सुखी नहीं हूँ और कारण नहीं जान पा रहे तो एक बार अवश्य इस मार्ग को समझें अच्छा लगे तो साथ चलें



चल मेरे साथ ही चल 



ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनाः ! 
मनः षष्ठानी ि न्द्राणी प्रकृतिस्थानि कर्षति !!    
गीता अध्याय १५   श्लोक ७ 

''भगवन कृष्ण कहते हैं की सभी मानव ईश्वर की संतान हैं''

अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम् !!
गीता अध्याय ९ श्लोक ३३ 

'' भगवान कृष्ण कहते हैं की सुखरहित क्षणभंगुर किन्तु दुर्लभ मानव तन को पाकर मेरा भजन कर अर्थात भजन का अधिकार केवन मनुष्य शरीरधारी को है ''



५००० वर्ष पहले आने वाले समय के लिए कहे गए शब्दों में सम्पूर्ण ज्ञान है जो की सम्पूर्ण मानव जाती के लिए है 

इस जीवन का कोई तो अर्थ  होगा आखिर मैं मानव योनि में भी वो ही सब क्यों कर रहा हूँ जो अन्य निकृष्ट योनियों के जीव कर रहें है और आश्चर्य इस बात का है की ये सारी योनियां मनुष्य योनि के अधीन हैं

मानव जीवन के महत्व को समझें

भौतिक जीवन में की जाने वाली क्रियायें  ही आपके लिए आध्यात्मिक जीवन का मार्ग सुनिश्चित करेंगी जिससे आपके जीवन के सभी दुखों का अंत होगा    

अगर आपको भौतिक जीवन  का मार्ग, शाश्वत संतोष तथा  शांति चाहिए तो गीता का सहारा लें 

पहले जानें , समझें , और फिर क्रियान्वित करें 

याद रखें की एक दिन जाना है  पर साथ क्या जायेगा ये अवश्य सुनिश्चित करें 

बिना वैराग्य और विवेक के की गई कोई भी क्रिया का  मानव जीवन में कोई औचित्य नहीं है 
क्रिया की प्रतिक्रिया होती है जो फल के रूप में हमें प्राप्त होते हैं  अतः ये चक्र चलता रहता है और इसे ही हम कर्म मान  बैठते हैं 
वैराग्य का अर्थ समझें तभी आप विवेक को जान पाएंगे और उस से ही कर्म का मार्ग प्रशस्त होगा जो कभी क्षय नहीं होता और केवल आत्मतत्व अथवा परमात्मा से मिलन के लिए मार्ग प्रशस्त करता है   

जो कुछ इस लेख में प्रतिदिन मैं लिखूंगा वो हो सकता है आपके जीवन में परिवर्तन ला सके जिसके जीवन में परिवर्तन आ जाता है उसके लिए सृष्टि में भी परिवर्तन आ जाता है 

अगर आपको ये मेरा प्रयास अच्छा लगे तो कृपया इसे बांटें क्यूंकि प्रकृति का नियम है जिस भी वस्तु को बांटोगे वो उतना ही बढ़ेगी 

प्रेम बांटो प्रेम बढ़ेगा , घृणा बांटो घृणा बढ़ेगी ,





मूक दर्शक 

देश में गरीबी है 
देश में अनपढ़ता है 
देश में असमानता है 
देश में असहिषुणता है 

देश में रोटी   है
देश में कपडा है
देश में मकान  है
देश में रोजगार है 
देश में स्कूल है 
देश में संस्कार हैं 
देश में भाईचारा है 

फिर देश बेचैन क्यों है 
कारण 
सिर्फ इतना ही समझ पाया हूँ 
इन सब के लिए सब जिम्मेवार हैं 

क्यों की हम सब 

मूक दर्शक हैं 




रविवार, 24 फ़रवरी 2019

EK AWAZ ------DARLAGHAT INDUSTRIAL CITY AND POLLUTION


कोई शक नहीं की दाड़लाघाट ने स्वयं को एक आर्थिक क्षेत्र की तरह उन्नत किया है 
आज सब कुछ है धन है, वैभव है, परन्तु नहीं है तो साफ हवा 

मैं सभी लोगों से ये अपील करना चाहता हूँ की चाय  की चुस्की ले कर, गली की नुक्कड़ में बैठ कर दाड़ला के पर्यावरण की समस्या के बारे चर्चा करने से अच्छा है की कुछ जागरूकता से काम करें 

हैरानी है शिमला - मंडी कभी राज्य स्तरीय सड़क थी फिर राष्ट्रीय उच्च मार्ग का दर्जा मिला अब फोर लेन के लिए तैयार है परन्तु एक बात आज तक न तो किसी ने उठाई और न ही गौर किया 
राष्ट्रीय उच्च मार्ग घोषित होने के बाद भी दानोघाट से भराड़ीघाट  तक  का 21 की मी की सड़क की हमेशा से अनदेखी की गई 

प्रश्न ये है :
  • राष्ट्रीय उच्च मार्ग में क्या ये 21 की मी  नहीं आता था ? अगर आता था तो उसे बनाया क्यों नहीं गया ?

  • राष्ट्रीय उच्च मार्ग जब किसी भी शहर अथवा बस्ती की बीच से गुजरता है तो उसकी न्यूनतम आवश्यकताओं को अनदेखा क्यों किया गया ? जैसे की जल निकासी की व्यवस्था, पैदल मार्ग की व्यवस्था आदि 

  • जबकि ये सरकारी अमले को ज्ञात था की दाड़ला के बीचों बीच से सीमेंट प्लांट के लिए 3000  गाड़ियों की आवाजाही रहती है इसके आलावा भी राजधानी के लिए रोज़  सैकड़ों गाड़ियों तथा शिमला मनाली के लिए सैलानियों को भी  ये ही एक रास्ता है फिर भी कोई गौर नहीं किया गया. 

  • हैरानी इस बात की अधिक है की पूर्व की सरकारों तथा इस सरकार के दो मुख्यमंत्री तथा कई कद्दावर मंत्री यहाँ इसी रस्ते से अपने विधानसभा क्षेत्रों को जाते रहे अथवा जाते हैं फिर भी कोई सुनवाई नहीं 

  • आज इस सड़क की सही व्यवस्था न होने के कारण सड़क से उठने वाली धूल तथा जगह जगह पानी के रुकने से जीवन कठिन हो गया है 

सबसे अधिक रोड टैक्स देने के बाद भी इलाका  धूल फाँकने को मजबूर है 


और इस के लिए सभी दलों  नेता, मंत्री, तथा नौकरशाह जिम्मेवार हैं  

जब सिस्टम काम न करे तो उसके विरुद्ध आवाज उठाना हमारा कर्तव्य है 

ये समझ लें हम  संविधान के अनुसार नागरिक हैं,   प्रजा या गुलाम नहीं   

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2019

Difference



गांधीवाद और आज 

परम आदरणीय, युग पुरुष, राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी की विचारधारा   

भारत वर्ष की आज़ादी और देश के निर्माण के लिए, हर उस व्यक्ति के लिए जो उस समय और कल खंड को जी रहा था 
अथवा  
किसी भी देश की गुलामी  से बाहर  निकलने की इच्छा शक्ति को मजबूत बनाने के लिए विचारधारा सही है 

ये विचारधारा भारत के सांस्कृतिक और वैचारिक व्यवस्था को बनाने के लिए ठीक है जिसमें सभी लोग जो इस भूभाग में रह रहें हों वो सौहार्दपूर्ण रह सकें  फिर वो चाहे किसी भी जाती अथवा धर्म के हों 
सबको समानता हो और उन्नति के समान अवसर हों 

परन्तु 

शेष विश्व में जो लोग और विचारधाराएं हैं जो की विस्तारवादी है चाहे धर्म के विस्तार के लिए अथवा आर्थिक विस्तार के लिए उनके लिए गाँधीवादी विचार काम में नहीं आ सकते 

हमें मानवतावादी मूल्यों के साथ जीना चाहिए, पर अगर बात देश में रहने वाले नागरिकों के जीवन अथवा भूभाग पर अतिक्रमण की हो तो उस घडी उसी भाषा में उत्तर देना आवश्यक है 

देश में गांधीवाद रहे कोई परेशानी नहीं पर आक्रांताओं को गांधीवाद से नहीं उन्हीं की भाषा में जवाब देना आज की आवश्यकता है 

हमें अपने सविंधान को पढ़ना और समझना चाहिए और
 जिस भूभाग के लिए इसे बनाया और लागु किया गया है उससे प्रेम तथा गर्व करना चाहिए 

  

गुरुवार, 14 फ़रवरी 2019

Are only the Muslim Women victims?

ये यक्ष प्रश्न है, जो नागरिक है, वो किसी राजनैतिक विचारधारा से जुड़े बिना संविधान के अनुसार अवश्य  सोचे 

 क्या केवल मुस्लिम महिलाएं ही तलाक़ के अत्याचार को सह रहीं हैं ? 
अगर हां 
तो उन हिन्दू महिलाओं को कौन इन्साफ देगा जो वर्षों से बिना तलाक़ के छोड़ दी गयीं हैं 
और वृन्दावन ,बनारस,हरिद्वार  के आश्रमों में जीवन यापन कर रहीं हैं 

क्या तीन तलाक़ बिल  केवल राजनैतिक फ़ायदा लेने के लिए  नहीं है ?
अगर महिला की बात करें तो हर धर्म  की विसंगतियों को ध्यान में रख कर बिल बनाया जाये 
न की 
उसकी आड़ में केवल वोटों के ध्रुवीकरण तथा राजनैतिक लाभ न  देखा जाय 




मंगलवार, 12 फ़रवरी 2019

EDUCATION MEANS LOGICAL ANALYSIS

AVOID PROPAGANDA BE REAL AND THINK PRACTICAL

THE SOCIALIST ECONOMY RESULTS:
The five year plans and the support programs for the socially and economically weaker sections, increased the per capita income, literacy levels, and living standards of millions of Indians.

During the 1980s, the government planted the seeds of economic revolution by realizing the importance of modern technology, market competition, and private entrepreneurship.

 Besides the PSUs and the socio-economic programs, another good thing that happened to India was the opening up of the economy also known as Liberalization, Globalization, and Privatization (LPG) in the 1990s as a result of the World Trade Organization (WTO) agreements.

 Indian industry, that was used to several years of protectionism, initially protested against LPG underestimating the industry's capability to compete with developed nations. However, in few years, Indian industry proved itself wrong.

This is evident from the statistics available.

 The GDP of India has grown from a merge 93.7 billion rupees in 1950 to about 410006.4 billion rupees in 2006.

Right from 2003, India is growing at a rate more than 8 per cent. 

ITS NOT THE FIVE YEARS THAT MAKE THE SHAPE OF INDIA
DON'T GO WITH GOSSIPS CAME OUT FROM THE AURA
OF BEING RULED 

GOVERN YOURSELF AND BE RESPONSIBLE   
BE CITIZEN FIRST

WAS NEHRU WRONG


क्या नेहरू गलत थे ?

अक्सर हैरान हो जाता हूँ ये सोच कर की एक बनी  बनाई आर्थिक स्थिति  पा लेने के बाद उसकी कमियों का बखान करना ऐसा हम तब कर सकते हैं क्यूंकि हमारा उस आर्थिक स्थिति  को बनाने में कोई योगदान नहीं होता 

आज सबको भारत की समाजवादी अर्थव्यवस्था के बारे कटाक्ष करते देख आश्चर्य होता है क्यूंकि बिना सत्य को जाने हम अपने पूर्वजों को गलत करार   देते हैं  फिर ताल ठोक कर कहते हैं की हम शिक्षित हैं 

हम में आज भी प्रजा अथवा गुलाम होने का भाव समाप्त नहीं हुआ है 
हम आज भी नागरिक नहीं बने है जो की देश की सत्ता को सही हाथों में दे सके ऐसी मानसिकता नहीं बन पाई  है 
आज जिस मजबूत आर्थिक आधार पर खड़े हो कर हम जिनको कोसते है उन्हें ये जान लेना चाहिए की देश जब आज़ाद हुआ था उस समय ब्रिटिश सम्राज्य दुसरे विश्वयुद्ध से बिखरी हुए अर्थव्यवस्था थी जिसके दुष्प्रभाव भारत का विभाजन था भारत की सरकार को कई सामाजिक व् आर्थिक समस्याओं के आलावा बड़े पैमाने पर रिफुजी कैम्पों,गरीबी, अनपढ़ता,स्वास्थ आदि समस्याओं का सामना करना पड़ा 
इन्हीं समस्याओं को दिमाग में रख कर तत्कालीन प्रधानमन्त्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने समाजवादी अर्थव्यवस्था का चुनाव किया 
जिसने देश के लिए आवश्यक आधारभूत ढांचे को खड़ा करने के लिए पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग को जन्म दिया जिसमें भारी पूँजी  निवेश की आवश्यकता थी जैसे की यातायात , सड़क, खनन,स्टील,हैवी इलेक्टीरिक्ल जैसे आधारभूत उद्द्योगों की स्थापना थी और कोई भी प्राइवेट सेक्टर के लोग इस में पैसा लगाने के लिए तैयार नहीं थे कियुँकि पूँजी  निवेश ज्यादा था और वापिसी की उम्मीद देरी से थी.
इन परिस्थितियों में तत्कालीन का कदम एक दम सही था 

Today, we find many successful people criticizing the protectionist policies adopted by the political leaders for many decades since independence. But, they forget the notion that like any child needing hand holding during infancy, the new India full of poor, penniless people, most needed such hand holding till they could start walking

इस लिए किसी भी विचार को बनाने से पहले तथ्यों के आधार पर मंथन करना शिक्षित व्यक्ति का कार्य है  

exploring mother nature in HP : Analyze and take the Decision

exploring mother nature in HP : Analyze and take the Decision: If Nationalist Then First Know, Analyze Then Decide  We got Independence in 1947 before that we were, प्रजां for thousands o...

Analyze and take the Decision


If Nationalist Then First Know, Analyze Then Decide 

We got Independence in 1947

before that we were,
प्रजां for thousands of years under king with no right,

then became

ग़ुलाम (Slave) for hundreds  of years with no identity,

but first time we became

नागरिक (citizen) of a land mass in 1948 after in incarnation of 

Constitution of India

with own Identity, Right, Duty and above all the owner of State.

Must Realize the fact that We the Citizen of India of all religion, Cast, Creed, are equal as per the Law of Land
The Constitution Of India.

If we are responsible citizen of India We must get out of this thought process of प्रजां anग़ुलाम which is based on the biased approach of Cast And Creed.
Apply your brain and know your identity and power.

Because As a Citizen We have power to create such a government who enforce the Law of Land 

INSTEAD OF CAST,CREED OR RELIGION