रविवार, 24 दिसंबर 2017





जय राम जय राम
 जय श्री राम 




माननीय मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश ,

आपको हार्दिक शुभकामनायें तथा मुबारक बाद। आपको आज इस पद पर देख कर अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। मुझे आज भी वो दिन जेहन में है जब आप मंडी कॉलेज में छात्र राजनीती में थे और आपकी अपने कार्य के प्रति निष्ठां तथा समर्पण को मैंने महसूस किया है।  आज जीवन के जिस पड़ाव में आपको ये जिम्मेदारी मिली है मैं जानता हूँ की इस ये समय आपके और प्रदेश दोनो के लिए महत्वपूर्ण  है।  

प्रदेश की जनता पिछले ७० वर्षों में 5 मुख्यमंत्रिओं के शाषन देख चुकी है और अब जिस तरह से देश ने करवट ली है हम सब केवल एक मात्र उम्मीद आपसे सब आप से रख रहें है जो की आपके स्वाभाव में है कि  "आम जनता की आप तक पहुँच रहे और जनता के प्रति आप संवेदनशील रह कर अपने प्रशाशनिक ढांचे को मजबूती से चलाएं "

यद्यपि मैं समझ सकता हूँ कि चुनौतियां काफी हैं परन्तु हिमाचल की जनता ये चाहती है कि आप प्रदेशहित में कुछ ऐसा करें जो की दूरगामी परिणाम दे सकें ताकि प्रदेश की भावी पीढ़ी का भविष्य संवर सके। 

प्रदेश की ७१ लाख की आबादी ये चाहती है की हिमाचल के करीब (निजी तथा सरकारी )17 इंजिनीरिंग कॉलेजों ,22 पॉलिटेक्निक कॉलेजों।, 89 सामान्य डिग्री कॉलेजों , 17  विष्वविद्यालयों ( तकनिकी तथा गैर तकनिकी ) , लगभग 90 नर्सिंग कॉलेजों  आदि से जो हर छह माह के बाद जो युवा पढ़ कर निकल रहे है उनके लिए कुछ ऐसा करें कि लाखों रूपये खर्च करने के बाद वे रोज़गार के लिए न भटकें। क्यूंकि ये ही कल का हिमाचल है और आपकी दूरदर्शिता और दूरगामी परिणाम देने वाली नीतियां ही उज्जवल भविष्य का निर्माण कर सकती है. 

"हिमाचल ही एक ऐसा राज्य है जहाँ राम राज्य अर्थात सबको समान रूप से बढ़ने के स्वप्न की सार्थकता को स्थापित कर सम्पूर्ण भारत को प्रेरित किया जा सकता है "

एक बार फिर आप को  इस पद  के लिए आपको हृदय से मुबारकबाद। 


पंकज शर्मा 
दाड़लाघाट 








मंगलवार, 8 अगस्त 2017

Need Of Any Human Being ............


"मैं जिंदगी हूँ" 
"आज आप मेरा रोना शायद नहीं सुन और कल शायद आप भी न रहें"

युद्ध डरपोक लोगों की सोच है 
सच्चा योद्धा केवल शांति के लिए कार्य करता है। 






हे भगवन मैं अपने  1,40000 पूर्वजों को ये कहना चाह
रहा हूँ की  अगर हम  नहीं समझे तो जल्दी ही  हम सब
स्वर्ग में मिलेंगे।
आप अफ़सोस न करें की जीने को नहीं मिला
क्यूंकि  यहाँ लोग जीना जानते ही नहीं।  




"धन्यवाद  पिताजी मुझे इस जगह लाने  के लिए अन्यथा मैं 
कभी नहीं जान पाती की हम मनुष्य केवल अपने दुश्मन हैं" 


न जाने हम जिंदगी छोड़ कर मरने की रह पर क्यों चल रहें है 
क्या चाहते हैं हम ?

पूरा विश्व आज एक ऐसी परिस्थिति में खड़ा किया जा चूका है की जहाँ किसी को जीने की इच्छा ही नहीं है 

हर कोई अमेरिका,इंग्लॅण्ड,रूस ,फ्रांस , ऑस्ट्रेलिया ,जर्मनी ,भारत ,चीन ,पाकिस्तान, कोरिया, ईरान, आदि उन सभी देशों के राजनेताओं  से मैं  ये जानना चाहता हूँ की क्या दुनिया अभी भी ये नहीं समझ पाई की 
दूसरे को डराने वाला वास्तव में खुद डरा हुआ होता है। 

मैं आज से 72 वर्ष पहले जो इस पृथ्वी पर घटा शायद हम या तो भूल गए हैं या दोबारा कुछ ऐसा करना चाह रहें हैं की ये दुनिया ही ख़त्म हो जाये 
 जो नहीं जानते या जिन्होंने उसे झेला  नहीं है तो मैं इन तस्वीरों के माध्यम से याद करवाना चाहता हूँ 
की यदि न समझे तो 

जिंदगी

हिरोशिमा 1945 परमाणु बम गिरने से पहले 



मौत 

हिरोशिमा 1945 परमाणु बम गिरने के बाद 
विचार करें क्या 1,40000 लोगों का क्या कसूर था?
क्या वो सब युद्ध चाहते थे ?



ये वो सिसकती जिंदगी है 
जिसका भविष्य शायद मौत से भी बदतर है 
जाने कितनी देर और तड़पना पड़े। 



माँआखिर मेरा कसूर क्या है ??????
मुझे नहीं पता बेटा ला मैं तेरे बाल बना दूँ जाने कब अलग हो जाएँ ?????



आज कोई तो है 
जो हमें याद कर रहा है 
पर हम तुम्हें आशीर्वाद भी नहीं दे सकते 
"जुग जुग जिओ"
क्यूंकि हम जानते हैं कि जल्दी ही तुम भी हमारी स्थिति में होगे। 

अगर समझ सको तो इतना जान लो  विनाश केवल नफरत  और भय  के कारण होता है 
जीवन के लिए केवल 
 प्रेम, सहिष्णुता,समानता करुणा,और त्याग 


जो कोई भी सर्वशक्तिमान होना चाहता है वर्चस्व स्थापित करना चाहता है 
वास्तव में वो विनाश का जनक है 



कृपया ध्यान दें और सभी विश्व शांति के लिए प्रयास करें 

भारतवासी ये कर सकते हैं क्यूंकि भारत में ही दुनिया के हर धर्म और नस्ल के लोग रहते है और सहिष्णुता के साथ रहते हैं। 


शनिवार, 29 जुलाई 2017

apne astitva ko jaane






दोस्तो ये जीवन खोने के लिए नहीं है 


अवसर आसमान आपका इंतज़ार कर रहा है 

क्या आपको लगता है की कोई भी आपकी भावनाओं को नहीं समझ रहा है ? 
इस लिए इस जीवन में अब कुछ भी शेष नहीं रह गया है ?

कहीं आप व्यर्थ के अवसाद अथवा तनाव का शिकार तो नहीं हो रहे ?
अपने से पीछे मुड़ कर तो देखो तुमसे बुरी परिस्थिति मं भी संघर्ष जारी है?
अपने को समाप्त कर लेने से समस्या का समाधान नहीं होता ?

भय किस बात का , छुपा क्या रहे हो, 
यहाँ सबका अस्तित्व क्षण भर का है 
परन्तु 
जन्म लेने का कोई मतलब है 
परिस्थिति से भागने से परिस्थिति कभी नहीं बदलती बल्कि परिस्थिति का धैर्यपूर्ण सामना कर के उसे बदला जा सकता है 

ईर्ष्या, द्वेष,असफलता,
के कारण  नशे की ओर  पदत्त होना कायरता है 




अगर आपको किसी भी समस्या का समाधान नहीं मिल रहा तो ये मान लें आपको किसी की आवश्यकता है ना की नशे की

कृपया मुझे अपनी सेवा का मौका दें शयद मैं आपके काम आ सकूँ 



9816060523


शनिवार, 22 जुलाई 2017

Re minder


चिट्टा  या  हीरोइन 


मेरा विश्वास करें ये दाड़ला में पांव पसार चुका  है 


ये जागने का समय है हमें अपने समाज को देखना और समझना चहिये 

"उत्तम शिक्षित अथवा अधिक धन अर्जित कर लेने से कोई समाज सभ्य नहीं हो सकता जब तक वो सुसंस्कृत नहीं होता "

मैंने अपने समाज रूपी इस परिवार का सदस्य  नाते अपना धर्म समझते हुए इस बुराई के विरुद्ध बोलना आवश्यक समझा। 

हो सकता है मेरे कुछ भाई भी इसके बारे में अवश्य जानते होंगे परन्तु चाय की दुकानों पर अथवा नुक्कड़ या चौराहों पर चिंतन करने से अच्छा तो ये है की हम अपनी जानकारी को समाज में साझा करें ताकि कोई गलत कदम न उठा ले। 
और अक्सर जैसा हम करते आये हैं 

"काश मैंने पहल कर दी होती तो शायद मैं उसे बचा सकता था" 
"नशा मुक्त रहें,अच्छा बनें "
मदद के लिए 
9816060523
 भाईयो अगर आप इस ओर जा रहे हो  या किसी को जाते देख रहे हो तो कृपया याद रखें 
ये रास्ता न आपके लिए है न ही किसी और के लिए 
आपका जीवन बहुमूल्य है इसे बर्बाद न होने दें 
अगर आपकी कोई भी समस्या है जीसका हल आपके पास नहीं हैं तो कृपया एक बार मुझे मौका दें
 हो सकता है मैं आपके काम आ सकूं 
आप नहीं जानते आप की आपके परिवार, समाज और उससे बढ कर  कहीं अधिक इस देश को आपकी आवश्यकता है। 
अपनी कीमत समझें 
"नशा किसी भी समस्या का हल नहीं होता अन्यथा समस्याओं को हल करने के लिए और किसी वस्तु की आवश्यकता ही न होती" 

अगर आपके आस पास या किसी मित्र, भाई, बहन , अथवा बच्चों के पास ऐसा कुछ देखें तो अवश्य जानने की कोशिश करें :

22जुलाई 2017 को मैने अपनी नैतिक जिम्मेवारी समझते हुए इसे पोस्ट किया था। तब किसी ने शायद मेरे इस लेख को अधिक महत्व नहीं दिया। ये स्थिति भयंकर परिणाम ला सकती है । किसी का भी जीवन चाहे उसका हमारे साथ सम्बन्ध हो न हो समाज के लिए देश के लिए बहूमूल्य है ।
घर के पास लगी आग को अनदेखा कर सो जाएंगे तो याद रखें उस आग में हमारा घर जलना भी निश्चित है ।
अतः निवेदन है कि मेरे इस प्रयास में सहयोग दें
कृप्या इसे अवश्य बांटें यही हमारी सम्पत्ति को संरक्षित

Pankaj sharma
9816060523
iqsolutions00@gmail.com

बुधवार, 31 मई 2017

Life does not mean property or status its something els

In these last five decades of life I experienced a lot from it. I had relations with all kind of persons in the society of different back grounds. Many of them were having every thing like Roti, Kapda, makan and many of them had more than that. My biggest problem is that I notice every thing. I always feel miseries of life to the people and so called happiness of the people around me.

Recently in 21st  century I had an unexpected experience of life in my state of Himachal pradesh that struck me and gave me a new dimension to the life. I saw a family living in cave in kashlsog village. I saw a couple there and curiously I went there and asked about them.

Although people of the area may have different opinion about them but living like this is really gave me strength and strengthen my thought

" if you want to judge my life,

My past, or my character.......

Walk in my shoes, walk the path I I have 

Travelled, live my sorrow, my doubts,

My fear, my pain and my

Laughter................

REMEMBER......

Every one has a sorry

When you have lived my life

Then you can judge me"


शनिवार, 27 मई 2017

Unification or marriage........ Bond of soul and god

None of us know why we marry actually

Is it for parents?
Is it for our biological needs?
Is it for society?
Is it an responsibility?

The first ever marriage in this universe is the marriage of Atma with parmatma. Which creates entire universe. Which was written in shiv puran or Vedas. The oldest groom was Param Atma or  Sadashiv and oldest bride was Prakrit or Mother Nature.

Sati or atma as an human form tries to meet Sadashiv with all prakritik Guns Satvik, Rajas and tamas. But lord Shiva was not ready to accept her in this shape although HE knows one day we have to meet but in pure form where unconditional shradha, vishwas, prem shall be prime. But natural attraction of sati or atma paved path towards sadashiv. Although he tried to discourage her movements but one feeling as an supreme Karuna turns in to Daya and he accepted her as it is. Then first time at kailash sadashiv laid down three basic vachans to sati for the real unification:

Always listen me

Be true to me

Never hide any thing from me

Unconditional faith and mutual consent

Why we are away from Param Atma or sadashiv or Ishwar or God or Allah because we are not following the basic principles of unification or marriage.

 Indian marriage system is not the confluence of to human bodies its laboratory where we have to prove the philosophy of unification by strictly following the rules or adopting the formula of unification. Which will not only give best result in this materialistic world as well unification with our origin.

मंगलवार, 23 मई 2017

Difficult task..... But the real task.... To know myself

Ya it's very difficult to know my own identity. Its a long journey of 50 years to explore my self. I tried every thing to get the answers of  basic questions of mine may be of every one from my child hood

Who am I?
Why I am here?
What I am doing?
Why I am not satisfied?
What will I found?
Why time restricted me?
Is all acts which I am doing is really mine?

Then I realised that I not Pankaj . it is the name given by others to me. Its the name of object called body made of every substance which exists around me. These all substances will recycled since this earth exists. Being so called human I am the top most creation of these substances but as I am having most powerful instrument brain which also in other bodies but not so powerful and creative. But its very confusing to me who is creating and why?

I tried to understand with past and present experience of creatures like me n written documents or verbally. Oldest Written documents on this earth are Vedas. Which gave me a direction of thought that there is one supreme power which is Atma also known as Paramatma create all these forms of body for his entertainment and He himself entered to evey body and plays given different roles of these bodies by himself. Its he who became every living thing himself and constitute almost 84,00,000 living (those who can be visible not visible like  germs, insects, worms,reptiles,trees,grass,moss,animal and human) where He is present and playing the tricks and every living thing is searching his origin

I found if I want to know my reality then I have to know about Atma instead of Paramatama. This the only way to solve the maze of life and reach to my origin.

Actually this practice of knowing myself gave me the answers of all above mentioned basic questions that arose in me. Actually these are the key question of the game Maze of Life. And this question is only given to the most intelligent and capable of getting the solutions creation of Atma ie Human.

बुधवार, 22 फ़रवरी 2017

सोचा न था

सोचा न था कि इतना बदल जाएगी
राहें जो आसान थीं बिखर जाएंगी
टुकड़ा टुकड़ा मिलेगी जिन्दगी
और एक दिन ठहर जाएगी
सोचा न था कि मिल कर भी न मिलेंगे
ऐ जिन्दगी हम अपने आप से पर तूने
करवा दिया सामना हर पाप से
सोचा न था कि इतना पहले ही गवां चुका हूं
जो मिला वह सब हिसाब है कर्मों की हुण्डी का
और न जाने क्या क्या जोड़ लिया फिर हिसाब मे

शनिवार, 4 फ़रवरी 2017

वक्त नहीं था...........


यूं ही चेहरे को निहार रहा था
अपने मन की दशा बघार रहा था
निश्चल सा निश्चय ले कर आया था
तुमने भी विश्वास दिलाया था
दीपक प्रेम का मैने भी जला लिया
सबको छोड़ तुम्हें अपना लिया
तुममें मैने सबकुछ पा लिया
पर लक्ष्य जो निर्धारित किया था मैनें
वो संसार से हटकर था इसीलिए दुष्कर था
परिणाम की उपेक्षा तो कर दी
परन्तु परिणाम तो निश्चित था 
आखिर वह वक्त भी आ ही गया
परन्तु 
अब वक्त नहीं था न कुछ कहने का न कुछ सुनने का

पंकज शर्मा

सोमवार, 30 जनवरी 2017

दासतां

ढलते सूरज को निहार कर एहसास हुआ कि

जिंदगी सरक रही है !


मुड़ कर निहाराा तो एहसास हुआ कि 

बहुत दूर आ चुका हूँ !


गौर किया तो एहसास हुआ कि

कुछ पाया ही नहीं !


अपनी शखशियत को देख कर एहसास हुआ कि

बहुत कुछ खो चुका हूँ !


सबकी हसरतों देख कर एहसास हुआ कि

केवल इस्तेमाल हुआ हूं


यही है दास्ताने जिंदगी कि

चारों ओर फैले सामान को देख कर एहसास हुआ 


पाक़ आया था अब गंदगी से सना हूं



पंकज शर्मा

रविवार, 29 जनवरी 2017

आत्मसात

हमारा जीवन केवल एक बिन्दु के ईर्द गिर्द घूमता हुआ समाप्त हो जाता है वह है आनंद की प्राप्ति जिसके लिए हम जीवन के हर क्षण प्रयासरत रहते हैं परंतु वह हमें प्राप्त नहीं हो पाता ! उसका एकमात्र कारण है तो केवल यही है कि हम स्वयं के लिए निहित भूमिका का निर्वाह नहीं करते अर्थात् हम अपने लिए कुछ भी नहीं करते ! जन्म से पहले अर्थात मां के गर्भ में मैं क्या था किसी को याद नहीं रहता परन्तु गर्भ से बाहर आते ही मैं पंकज,संजय,वेद प्रकाश इत्यदि जाने क्या क्या हो जाता हूं और हिन्दु, मुस्लिम, सिख, ईसाई बन जाता हूं ! अपनी पहचान खोने के पश्चात मैं अपनी मूल पहचान और कर्म अर्थात मानव तथा मानवता को भूल कर बाहरी आवरण के अनूरूप कर्म करने लगता हूं परन्तु यह अटल सत्य है कि आप कितना भी प्रयास कर लें परन्तु मूल रूप को कभी भी परिवर्तित नहीं कर  सकते यही कारण है कि हम कभी भी आनंदित, शांत, तथा संतुष्ट नहीं रहते बल्कि जिस तरह कस्तूरी मृग अपनी नाभी से आती कस्तूरी की सुगन्ध को जंगल की हर वस्तु घास,पत्तों,पत्थरों में सूंघता फिरता है वैसे ही हम स्वकर्म को त्याग कर रिश्तों,मान,अपमान,धन दौलत, सत्ता सम्पत्ती, में अपने आनंद को ढूंढने का प्रयास करते करते मानव जीवन के बहूमूल्य अवसर को खो बैठते हैं और मानव जीवन के उस मूल उद्देश्य अर्थात प्रभू के साथ आत्मसात का अवसर न केवल खो बैठते हैं बल्कि ऐसा कूड़ा एकत्रित कर लेते हैं जे केवल हमें संताप के अलावा कुछ नहीं देता और एक दिन हम भी कस्तूरी के उस मृग की तरह सुगंध की खोज में भागते भागते अपने प्राण त्याग देते हैं

                                                            " जीवन के मूल उद्देश्य को पहचाने------- याद रखें कि चारों ओर कितने ही असत्य क्यों न हो सत्य हमेशा अलग ही दिखाई देता है "

                                                                            " जौ नित्य प्रतिपल बदलता हो, समय अथवा काल से बंधा हो वह सत्य नही बल्कि सत्य वह है जो स्थिर हो जो कभी न बदले "

" मान, अपमान, स्त्री, पुत्र,पुत्री,धन, सम्पदा, सत्ता, दुःख, सुख,अहंकार,क्रोध,लोभ, काम,अपेक्षा,उपेक्षा,ईर्षा,राग,अनुराग,मोह,ममता, ईत्यादी मां के गर्भ के बाहर की वस्तुएं हैं न कि हमारे मूल रूप की और न ही यह सदा स्थिर ही रहती हैं अर्थात यह सब असत्य है इनके लिए किया गये कर्म का परिणाम भी असत्य ही होगा फिर इतने असत्यों मे सत्य अलग से पहचाना जा सकता है जो हमारा स्वकर्म है वह है निरंतर हरि भजन करते हुए इन सभी असत्यों पर नियन्त्रण रख कर आनंद के साथ आत्मसात करना"                           

 " जिस तरह चलचित्र में एक ही पात्र को अलग अलग भूमिकएं करनी पड़ती हैं वैसे ही हम भी यहां अलग अलग भूमिका में हैं कौन सा पात्र कौन सी भूमिका कितने समय के लिए निभएगा यह निर्देशक के हाथ में हैं" 


" हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे, हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे !! "

" जीवन छोटा है याद रखें, एक दिन मरना भी है याद रखें, आवश्यकता की पूर्ती करें कामनाओं के पीछे न भागें वे किसी की भी पूरी नहीं होतीं "

नारायण................. पंकज शर्मा