सोमवार, 30 जनवरी 2017

दासतां

ढलते सूरज को निहार कर एहसास हुआ कि

जिंदगी सरक रही है !


मुड़ कर निहाराा तो एहसास हुआ कि 

बहुत दूर आ चुका हूँ !


गौर किया तो एहसास हुआ कि

कुछ पाया ही नहीं !


अपनी शखशियत को देख कर एहसास हुआ कि

बहुत कुछ खो चुका हूँ !


सबकी हसरतों देख कर एहसास हुआ कि

केवल इस्तेमाल हुआ हूं


यही है दास्ताने जिंदगी कि

चारों ओर फैले सामान को देख कर एहसास हुआ 


पाक़ आया था अब गंदगी से सना हूं



पंकज शर्मा

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