शनिवार, 4 फ़रवरी 2017

वक्त नहीं था...........


यूं ही चेहरे को निहार रहा था
अपने मन की दशा बघार रहा था
निश्चल सा निश्चय ले कर आया था
तुमने भी विश्वास दिलाया था
दीपक प्रेम का मैने भी जला लिया
सबको छोड़ तुम्हें अपना लिया
तुममें मैने सबकुछ पा लिया
पर लक्ष्य जो निर्धारित किया था मैनें
वो संसार से हटकर था इसीलिए दुष्कर था
परिणाम की उपेक्षा तो कर दी
परन्तु परिणाम तो निश्चित था 
आखिर वह वक्त भी आ ही गया
परन्तु 
अब वक्त नहीं था न कुछ कहने का न कुछ सुनने का

पंकज शर्मा

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