सोमवार, 30 जनवरी 2017

दासतां

ढलते सूरज को निहार कर एहसास हुआ कि

जिंदगी सरक रही है !


मुड़ कर निहाराा तो एहसास हुआ कि 

बहुत दूर आ चुका हूँ !


गौर किया तो एहसास हुआ कि

कुछ पाया ही नहीं !


अपनी शखशियत को देख कर एहसास हुआ कि

बहुत कुछ खो चुका हूँ !


सबकी हसरतों देख कर एहसास हुआ कि

केवल इस्तेमाल हुआ हूं


यही है दास्ताने जिंदगी कि

चारों ओर फैले सामान को देख कर एहसास हुआ 


पाक़ आया था अब गंदगी से सना हूं



पंकज शर्मा

रविवार, 29 जनवरी 2017

आत्मसात

हमारा जीवन केवल एक बिन्दु के ईर्द गिर्द घूमता हुआ समाप्त हो जाता है वह है आनंद की प्राप्ति जिसके लिए हम जीवन के हर क्षण प्रयासरत रहते हैं परंतु वह हमें प्राप्त नहीं हो पाता ! उसका एकमात्र कारण है तो केवल यही है कि हम स्वयं के लिए निहित भूमिका का निर्वाह नहीं करते अर्थात् हम अपने लिए कुछ भी नहीं करते ! जन्म से पहले अर्थात मां के गर्भ में मैं क्या था किसी को याद नहीं रहता परन्तु गर्भ से बाहर आते ही मैं पंकज,संजय,वेद प्रकाश इत्यदि जाने क्या क्या हो जाता हूं और हिन्दु, मुस्लिम, सिख, ईसाई बन जाता हूं ! अपनी पहचान खोने के पश्चात मैं अपनी मूल पहचान और कर्म अर्थात मानव तथा मानवता को भूल कर बाहरी आवरण के अनूरूप कर्म करने लगता हूं परन्तु यह अटल सत्य है कि आप कितना भी प्रयास कर लें परन्तु मूल रूप को कभी भी परिवर्तित नहीं कर  सकते यही कारण है कि हम कभी भी आनंदित, शांत, तथा संतुष्ट नहीं रहते बल्कि जिस तरह कस्तूरी मृग अपनी नाभी से आती कस्तूरी की सुगन्ध को जंगल की हर वस्तु घास,पत्तों,पत्थरों में सूंघता फिरता है वैसे ही हम स्वकर्म को त्याग कर रिश्तों,मान,अपमान,धन दौलत, सत्ता सम्पत्ती, में अपने आनंद को ढूंढने का प्रयास करते करते मानव जीवन के बहूमूल्य अवसर को खो बैठते हैं और मानव जीवन के उस मूल उद्देश्य अर्थात प्रभू के साथ आत्मसात का अवसर न केवल खो बैठते हैं बल्कि ऐसा कूड़ा एकत्रित कर लेते हैं जे केवल हमें संताप के अलावा कुछ नहीं देता और एक दिन हम भी कस्तूरी के उस मृग की तरह सुगंध की खोज में भागते भागते अपने प्राण त्याग देते हैं

                                                            " जीवन के मूल उद्देश्य को पहचाने------- याद रखें कि चारों ओर कितने ही असत्य क्यों न हो सत्य हमेशा अलग ही दिखाई देता है "

                                                                            " जौ नित्य प्रतिपल बदलता हो, समय अथवा काल से बंधा हो वह सत्य नही बल्कि सत्य वह है जो स्थिर हो जो कभी न बदले "

" मान, अपमान, स्त्री, पुत्र,पुत्री,धन, सम्पदा, सत्ता, दुःख, सुख,अहंकार,क्रोध,लोभ, काम,अपेक्षा,उपेक्षा,ईर्षा,राग,अनुराग,मोह,ममता, ईत्यादी मां के गर्भ के बाहर की वस्तुएं हैं न कि हमारे मूल रूप की और न ही यह सदा स्थिर ही रहती हैं अर्थात यह सब असत्य है इनके लिए किया गये कर्म का परिणाम भी असत्य ही होगा फिर इतने असत्यों मे सत्य अलग से पहचाना जा सकता है जो हमारा स्वकर्म है वह है निरंतर हरि भजन करते हुए इन सभी असत्यों पर नियन्त्रण रख कर आनंद के साथ आत्मसात करना"                           

 " जिस तरह चलचित्र में एक ही पात्र को अलग अलग भूमिकएं करनी पड़ती हैं वैसे ही हम भी यहां अलग अलग भूमिका में हैं कौन सा पात्र कौन सी भूमिका कितने समय के लिए निभएगा यह निर्देशक के हाथ में हैं" 


" हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे, हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे !! "

" जीवन छोटा है याद रखें, एक दिन मरना भी है याद रखें, आवश्यकता की पूर्ती करें कामनाओं के पीछे न भागें वे किसी की भी पूरी नहीं होतीं "

नारायण................. पंकज शर्मा