गुरुवार, 21 नवंबर 2019

चल मेरे साथ ही चल ....... 3



चल मेरे साथ ही चल 


कल हम बात क्र रहे थे उन १८ बिंदुओं की जिन का   योगेश्वर कृष्ण ने गीता के १८ अध्यायों में वर्णन किया है।  

हमारा अर्थात जीव का गीता में स्थान क्या है ये जान लेना आवश्यक है क्यूंकि गीता ज्ञान का प्रसारण मानव मात्र के लिए किया गया है।  

ये जानना भी आवश्यक है कि गीता है क्या ?

गीता जीविका संग्राम नहीं है अर्थात गीता का ज्ञान इसलिए नहीं की ये  जीविका अथवा संसार के भौतिक सुखों को पाने के लिए है संग्राम का साधन है अपितु जीवन संग्राम में शाश्वत विजय का क्रियात्मक प्रशिक्षण है  इसी लिए यह युद्ध ग्रन्थ है  जो वास्तविक विजय दिलाता है। 
गीता शस्त्रों से लड़ा जाने वाला सांसारिक युद्ध नहीं है 

शस्त्रों से लड़े  गए किसी भी युद्ध में शास्वत विजय नहीं मिलती 

ये सद्सत वृतियों अर्थात सद्गुणों तथा दुर्गुणों  का  संघर्ष है जिनके रूपात्मक वर्णन की परम्परा रही है 
वेदों में इंद्र तथा वृत्र संघर्ष वर्णन,विद्द्या अविद्द्या का संघर्ष , पुराणों में देवासुर संग्राम , महाकाव्यों में  राम रावण युद्ध , कौरवों पांडवों का संघर्ष को ही गीता में धर्मक्षेत्र और कुरुक्षेत्र , देवीय सम्पदा तथा आसुरी सम्पदा , सजातीय एवं विजातीय , सद्गुणों एवं दुर्गुणों का संघर्ष कहा गया है। 

ये संघर्ष होता कहाँ है , स्थान कहाँ है ? 

गीता का धर्म क्षेत्र और कुरु क्षेत्र कोई भूभाग नहीं बल्कि स्वयं गीतकार अर्थात योगेश्वर कृष्ण के शब्दों में ---
'' इदं शरीरं कौंतये क्षेत्रमित्यभिधीयते। ''

'' कौंतये अर्थात अर्जुन ! ये शरीर ही एक क्षेत्र है, जिसमें बोया हुआ भला बुरा बीज संस्कार रूप से सदा उपजता है दस इन्द्रियां , मन,बुद्धि,चित,अहंकार,पांचों ज्ञान इन्द्रियां ,और तीनो गुणों का विकार इस क्षेत्र का विस्तार है।  प्रकृति से उत्प्न्न इन तीनों गुणों राजस,तमस,सात्विक से विवश हो कर मनुष्य को कर्म करना पड़ता है।  वह एक क्षण भी कर्म किये बिना नहीं रह सकता। ''
यही कुरुक्षेत्र है क्यूंकि कुरु का अर्थ है करो जो की प्रकृति से प्रेरित है   
जब मनुष्य परमधर्म परमात्मा की ओर अग्रसर होता है तो ये धर्मक्षेत्र बन जाता है 

ये शरीर ही क्षेत्र है। 

मनुष्य योनि  है क्या इस का वर्णन योगेश्वर गीता में देते है तथा मनुष्य योनि का महत्व एवम  हमारे दुखों का कारण इस संघर्ष की देन मात्र हैं। 


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