कोई शक नहीं की दाड़लाघाट ने स्वयं को एक आर्थिक क्षेत्र की तरह उन्नत किया है
आज सब कुछ है धन है, वैभव है, परन्तु नहीं है तो साफ हवा
मैं सभी लोगों से ये अपील करना चाहता हूँ की चाय की चुस्की ले कर, गली की नुक्कड़ में बैठ कर दाड़ला के पर्यावरण की समस्या के बारे चर्चा करने से अच्छा है की कुछ जागरूकता से काम करें
हैरानी है शिमला - मंडी कभी राज्य स्तरीय सड़क थी फिर राष्ट्रीय उच्च मार्ग का दर्जा मिला अब फोर लेन के लिए तैयार है परन्तु एक बात आज तक न तो किसी ने उठाई और न ही गौर किया
राष्ट्रीय उच्च मार्ग घोषित होने के बाद भी दानोघाट से भराड़ीघाट तक का 21 की मी की सड़क की हमेशा से अनदेखी की गई
प्रश्न ये है :
- राष्ट्रीय उच्च मार्ग में क्या ये 21 की मी नहीं आता था ? अगर आता था तो उसे बनाया क्यों नहीं गया ?
- राष्ट्रीय उच्च मार्ग जब किसी भी शहर अथवा बस्ती की बीच से गुजरता है तो उसकी न्यूनतम आवश्यकताओं को अनदेखा क्यों किया गया ? जैसे की जल निकासी की व्यवस्था, पैदल मार्ग की व्यवस्था आदि
- जबकि ये सरकारी अमले को ज्ञात था की दाड़ला के बीचों बीच से सीमेंट प्लांट के लिए 3000 गाड़ियों की आवाजाही रहती है इसके आलावा भी राजधानी के लिए रोज़ सैकड़ों गाड़ियों तथा शिमला मनाली के लिए सैलानियों को भी ये ही एक रास्ता है फिर भी कोई गौर नहीं किया गया.
- हैरानी इस बात की अधिक है की पूर्व की सरकारों तथा इस सरकार के दो मुख्यमंत्री तथा कई कद्दावर मंत्री यहाँ इसी रस्ते से अपने विधानसभा क्षेत्रों को जाते रहे अथवा जाते हैं फिर भी कोई सुनवाई नहीं
- आज इस सड़क की सही व्यवस्था न होने के कारण सड़क से उठने वाली धूल तथा जगह जगह पानी के रुकने से जीवन कठिन हो गया है
सबसे अधिक रोड टैक्स देने के बाद भी इलाका धूल फाँकने को मजबूर है
और इस के लिए सभी दलों नेता, मंत्री, तथा नौकरशाह जिम्मेवार हैं
जब सिस्टम काम न करे तो उसके विरुद्ध आवाज उठाना हमारा कर्तव्य है
ये समझ लें हम संविधान के अनुसार नागरिक हैं, प्रजा या गुलाम नहीं
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