बाबर क्यों नहीं चाहिए भारत में ?
या कहें पूरे विश्व में ?
भारत में मुग़ल शासन की नींव रख कर इतिहास में एक अलग तरह की पहचान बनाने वाले इस शख्श को जानने के लिए हमें इतिहास के पन्ने अवश्य पलट लेने चाहिए। इसलिए नहीं की बाबर एक व्यक्ति विशेष था इसलिए कि बाबर एक सोच है एक ऐसी सोच जिस के बारे में जानना और समझना हिन्दू और मुसलमान दोनों ही धार्मिक मान्यताओं के लोगों के लिए आवश्यक है। किसी भी व्यक्ति का व्यक्तित्व उसके अन्तःकरण में बोये गए संस्कारों के बीज के कारण होता है ये संस्कार परिवार,समाज तथा देश काल के कारण उपजता है और जिसकी स्थापना वो अपने शेष जीवन में संसार में स्थापित करने में अपनी ऊर्जा को लगाता है।
भारत में बाबर और मुग़ल साम्राज्य में हुई सांस्कृतिक चोट तथा यहाँ के समाजिक ढांचे में किये गए अत्याचार के फलस्वरूप बाबर एक खलनायक की तरह है।
कारण सदैव एक ही रहा है
सत्ता के प्रति आकर्षित हर व्यक्ति हर उस शक्ति का प्रयोग करता है जो उसके सत्ता पर पहुँचने तथा बने रहने के लिए आवश्यक हो।
जिसमें रक्त की शुद्धता,नस्ल की सर्वोच्चता , विचारों की असमानता , अथवा आर्थिक सुदृढ़ता, धार्मिक असहिषुणता इत्यादि जैसे कई विचार सहायक रहते हैं जो की अपनी सर्वोच्चता को सिद्ध करने के लिए उपयोग में लाये जाते है।
यद्द्यपि धर्म का मूल सिद्धांत एक ही है वस्तुतः टकराव मान्यताओं का है जो की समाज में एक तरह के नियम अथवा उपनियम पैदा करते हैं और जिनको मानना ही सामाजिक व्यवहार में आवश्यक होता है पहचान के लिए। इन्हीं धार्मिक मान्यताओं के कारण ही किसी भी समाज के आर्थिक,राजनैतिक तथा सामाजिक नियमों का जन्म होता है।
समाज को धर्म का मूल सिद्धांत समाज के होने के लिए केन्द्र में होता है पर समाज मान्यताओं में बंधा उसके विपरीत निर्वाह करता हुआ अनेक लोगों को मान्यतों के आधार पर पीड़ित करने का कारण है। ये मान्यताएं विपरीत हों तभी अत्याचार का कारण बनेंगी ऐसा नहीं है बल्कि अपनी ही मान्यताओं में भी लोग एक दूसरे पर अत्याचार करते हैं
कारण फिर भी एक ही है सर्वौच्चता।
बाबर को जानने से पहले हमें चंगेज़ खान और तैमूर लंग के बारे में जानना चाहिए क्यूंकि बाबर जैसी सोच के जन्म लेने के लिए उस सोच को भी जानना जरूरी है जिसने बाबर को जन्म दिया।
तब कहीं हम सब ये जान पाएंगे की बाबर भारत अथवा पूरे विश्व में क्यों नहीं चाहिए।
मेरा प्रयास है की हम किसी ऐसी सोच को जन्म न दें जिससे मानव समाज की हत्या हो बल्कि ऐसी समझ को जन्म दें जिससे हम अपने भीतर के धर्मक्षेत्र का विकास करे और कुरुक्षेत्र के कौरव केवल उस विचारधारा के शंखनाद से ही भयभीत हो।
अगर भारत में आप चाहते हैं की चर्चा हो तो विचार के ध्रुवीकरण के लिए न हो कर सहमति से स्वीकार करने के लिए हो।
यह एक श्रृंखला बद्ध अभिव्यक्ति है जो प्रतिदिन डालता रहूंगा आपको अगर अच्छा लगे और चाहें की सबको तथ्य का पता चले तो कृपया शेयर करें।