शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019
चस्का - ए - शोहरत
चस्का - ए - शोहरत
दुनिया के मयकदे में मैं भी गया करने एहतराम मयकदे का
हर शख्स बेहोश था मयकदे में
पी कर जाम शोहरत का।
हर तरह की मय उड़ेली जा रही थी पर इन्तजार सबको एक ही था
कब मिलेगा
वो जाम शोहरत का।
मैंने भी चाहा कि क्यों न रुसवाईयों का दामन छोड़ कर चख लूँ ,
जायका जाम -ए - शोहरत का,
सबके हाथों में पैमाने देखे उसूलों के
जिन्हेँ दिखा दिखा कर सब
ढाल रहे थे जाम उसमें शोहरत का।
उन पैमानों से छलकती शोहरत की मय और वो मदहोश मंजर देख,
दुनिया के मयकदे में
एक जाम मैंने भी पीना चाहा,
शोहरत का।
जैसे ही अपने जमीर को मार कर
मैंने अपने उसूल को पैमाने की शक्ल दी
पैमाना मुझसे बोला
क्यों बेग़ैरत होता है मेरे अज़ीज़,
मुर्दों की इस भीड़ में मुझे ज़िबह कर
तुझे कुछ हासिल न होगा ,
पहले जा कर देख क्या क्या खो दिया
इन सब ने इस मदहोशी के लिए,
फिर चाहे चख लेना जायका,
जाम - ए - शोहरत का।
तन्हा रह कर ही तू रूह के सकून को पा सकेगा वक्त है,
अभी भी,
रूसवा रह दुनिया में ,
वरना,
तुझसे तुझ को ही छीन लेगा एक दिन ये चस्का
जाम -ए -शोहरत का।
गुरुवार, 5 दिसंबर 2019
स्वाह होते सवाल
स्वाह होते सवाल
घर के पिछवाड़े में एक शाम अख़बार का अंतिम संस्कार किया
मैंने,
उन नारंगी लपटों में काले स्याही से लिखे सवालों को जलते देखा
मैंने,
आज के बाद इन सवालों ली कोई पहचान नहीं होगी ऐसा सोचा था
मैंने,
गलत था मैं,
लपटों में जल कर भी राख के ढेर बने पन्नों पर सवालों को उभरते देखा
मैंने,
जाने इन बरसों में मेरे भीतर की ज्वाला में कितने सवाल स्वाह किये
मैंने
पर समझ में आज आया अपनी कुंठा का सच जब स्वाह होते सवाल राख के ढेर में
उभरते देखे मैंने
भीतर की अग्नि में चाहे जो भी जला डालो पर कर्मों की स्याही से लिखा सच जल कर
भी उभरते देखा मैंने
अंतर् केवल इतना था कि कुछ देर पहले छूने से वो बिखरते नहीं थे परन्तु अब
हवा से भी बिखरते देखा मैंने
बुधवार, 4 दिसंबर 2019
मानव समाज का एक वीभत्स सच
एक बार फिर उभरा वो दानव जो सदियों से मूल्यों की खोखली दलीलों पर मर कर जी उठता है।
बलात्कार
मानव समाज का एक वीभत्स सच
आज फिर एक बेटी किसी रावण के द्वारा हरण की गयी फ़र्क़ इतना था कि वो सीता नहीं थी अन्यथा शायद उसका तप उसे बचा पाता। किसी भी धर्म की मान्यताओं को उठा कर देख लें सभी धर्म नारी सम्मान व् नारी सुरक्षा के मूल्यों का परिभाषित करता है। हम भारतीय संस्कृति में जीने वाले और सर्वोच्च आदर्श को अपनाने का दम भरने वाले, हम मर्यादा पुरुषोतम राम को अपना आदर्श मानने वाले अगर नारी को सम्मान अथवा स्वतंत्रता न दे पाएं तो शायद हमें अपने आदर्श पुरुष के प्रति हमारी निष्ठां तथा आस्था पर एक बार अवश्य सोच लेना चाहिए।
कोई भी जो कोई इस्लाम,हिन्दू,सिख,बौद्ध ,जैन,ईसाई किसी भी धर्म में आस्था क्यों न रखता हो सबको एक बात अवश्य समझ में आ जानी चाहिए कि बिना नारी के पुरुष अस्तित्व ही नहीं ले सकता। आखिर किस संस्कृति अथवा खुलेपन अथवा स्वतंत्रता की बात करते हैं।
समाज कमजोर हो गया है हमारा यहाँ बलात्कार को भी हम लोग धीरे धीरे स्वीकार करते जा रहें हैं, हम समाज में ही आवाज उठाने से डरते हैं हम नपुंसकता की ओर जा रहे हैं जहाँ केवल बेचारगी है आंदोलन नहीं। हम केवल ये सोच कर जी रहें हैं कि मेरी बेटी सुरक्षित है या फिर मेरे बेटी ही नहीं है। परन्तु ये सत्य नहीं है कभी भी आप इस रावण का शिकार अवश्य होंगे अगर आंदोलित न हुए तो।
बाकि रही सत्ता की बात वो कोई भी विचारधारा की क्यों न आ जाये उनमें बलात्कारियों को टिकट मिलते रहेंगे और हम भी नपुंसकता की मानसिकता लिए तथाकथित विचारधारा से जुड़े होने के कारण विरोध न कर के उन्हें विजयी बना कर उनसे न्याय की उम्मीद भी लगाते रहेंगे।
जब तक हम स्व आंदोलित हो कर निर्णय नहीं करेंगे तब तक न जाने कितनी बार ये रावण कितने ही कुम्भकर्णों ,मारीचों, सुबहुओं , ताड़काओं ,शूर्पणखाओं, के सहारे न जाने और कितनी बार नारी का अपमान करेगा।
''या तो नारी को देवी का दर्जा देना बंद करो या फिर नारी सम्मान के लिए आंदोलित हो''
याद रखें नारी माँ होती है और जिसका कोई जाती या धर्म नहीं होता
शनिवार, 23 नवंबर 2019
बाबर क्यों नहीं चाहिए भारत में ? या कहें पूरे विश्व में ?
बाबर क्यों नहीं चाहिए भारत में ?
या कहें पूरे विश्व में ?
भारत में मुग़ल शासन की नींव रख कर इतिहास में एक अलग तरह की पहचान बनाने वाले इस शख्श को जानने के लिए हमें इतिहास के पन्ने अवश्य पलट लेने चाहिए। इसलिए नहीं की बाबर एक व्यक्ति विशेष था इसलिए कि बाबर एक सोच है एक ऐसी सोच जिस के बारे में जानना और समझना हिन्दू और मुसलमान दोनों ही धार्मिक मान्यताओं के लोगों के लिए आवश्यक है। किसी भी व्यक्ति का व्यक्तित्व उसके अन्तःकरण में बोये गए संस्कारों के बीज के कारण होता है ये संस्कार परिवार,समाज तथा देश काल के कारण उपजता है और जिसकी स्थापना वो अपने शेष जीवन में संसार में स्थापित करने में अपनी ऊर्जा को लगाता है।
भारत में बाबर और मुग़ल साम्राज्य में हुई सांस्कृतिक चोट तथा यहाँ के समाजिक ढांचे में किये गए अत्याचार के फलस्वरूप बाबर एक खलनायक की तरह है।
कारण सदैव एक ही रहा है
सत्ता के प्रति आकर्षित हर व्यक्ति हर उस शक्ति का प्रयोग करता है जो उसके सत्ता पर पहुँचने तथा बने रहने के लिए आवश्यक हो।
जिसमें रक्त की शुद्धता,नस्ल की सर्वोच्चता , विचारों की असमानता , अथवा आर्थिक सुदृढ़ता, धार्मिक असहिषुणता इत्यादि जैसे कई विचार सहायक रहते हैं जो की अपनी सर्वोच्चता को सिद्ध करने के लिए उपयोग में लाये जाते है।
यद्द्यपि धर्म का मूल सिद्धांत एक ही है वस्तुतः टकराव मान्यताओं का है जो की समाज में एक तरह के नियम अथवा उपनियम पैदा करते हैं और जिनको मानना ही सामाजिक व्यवहार में आवश्यक होता है पहचान के लिए। इन्हीं धार्मिक मान्यताओं के कारण ही किसी भी समाज के आर्थिक,राजनैतिक तथा सामाजिक नियमों का जन्म होता है।
समाज को धर्म का मूल सिद्धांत समाज के होने के लिए केन्द्र में होता है पर समाज मान्यताओं में बंधा उसके विपरीत निर्वाह करता हुआ अनेक लोगों को मान्यतों के आधार पर पीड़ित करने का कारण है। ये मान्यताएं विपरीत हों तभी अत्याचार का कारण बनेंगी ऐसा नहीं है बल्कि अपनी ही मान्यताओं में भी लोग एक दूसरे पर अत्याचार करते हैं
कारण फिर भी एक ही है सर्वौच्चता।
बाबर को जानने से पहले हमें चंगेज़ खान और तैमूर लंग के बारे में जानना चाहिए क्यूंकि बाबर जैसी सोच के जन्म लेने के लिए उस सोच को भी जानना जरूरी है जिसने बाबर को जन्म दिया।
तब कहीं हम सब ये जान पाएंगे की बाबर भारत अथवा पूरे विश्व में क्यों नहीं चाहिए।
मेरा प्रयास है की हम किसी ऐसी सोच को जन्म न दें जिससे मानव समाज की हत्या हो बल्कि ऐसी समझ को जन्म दें जिससे हम अपने भीतर के धर्मक्षेत्र का विकास करे और कुरुक्षेत्र के कौरव केवल उस विचारधारा के शंखनाद से ही भयभीत हो।
अगर भारत में आप चाहते हैं की चर्चा हो तो विचार के ध्रुवीकरण के लिए न हो कर सहमति से स्वीकार करने के लिए हो।
यह एक श्रृंखला बद्ध अभिव्यक्ति है जो प्रतिदिन डालता रहूंगा आपको अगर अच्छा लगे और चाहें की सबको तथ्य का पता चले तो कृपया शेयर करें।
चल मेरे साथ ही चल .......4
चल मेरे साथ ही चल
पिछले लेख में हमने जाना कि गीता है क्या ?
जीवन संग्राम में शाश्वत विजय का क्रियात्मक प्रशिक्षण है
शस्त्रों से लड़े गए किसी भी युद्ध में शाश्वत विजय नहीं मिलती
गीता में शस्त्रों से युद्ध से पहले अन्तःकरण के युद्ध की बात
ये संघर्ष होता कहाँ है , स्थान कहाँ है ?
ये स्थान हमारे अंतःकरण में है जैसा अन्तःकरण में संघर्ष है वो ही शारीरिक क्रिया से संसार में परिलक्षित होता है और हमारे लिए क्रियात्मक फल का स्वरुप बनता और बांधता है
ये शरीर ही क्षेत्र है।
ये शरीर ही क्षेत्र है जिसके अन्तःकरण में धर्मक्षेत्र तथा कुरुक्षेत्र का निर्माण होता
और शारीरिक क्रिया से ये ही धर्म क्षेत्र तथा कुरुक्षेत्र का निर्माण मनुष्य संसार में करता है ये ही जीवन के सुख दुःख का निर्माण करता है
प्रश्न है की अगर ये शरीर ही क्षेत्र है तो मनुष्य योनि में रह कर इसके निवारण का रास्ता क्या है ? जिस पुण्य को हम करते हैं फिर भी वो पुण्य हमारे विरोध में क्यों है अर्थात बंधन बांधता है ? आखिर मनुष्य अपने सनातन स्वरुप अर्थात आत्मा अथवा परमात्मा को क्यों नहीं देख पाता ?
योगेश्वर कृष्ण गीता में स्पष्ट करतें हैं की अंतःकरण की दो प्रवृतियां पुरातन हैं देवी सम्पद तथा आसुरी सम्पद।
दैवी सम्पद में हैं - पुण्य रूपी पाण्डु तथा कर्तव्य रूपी कुन्ती
पुण्य जागने से पहले मनुष्य जो कुछ भी कर्तव्य समझ करता है, वह अपनी समझ से कर्तव्य ही करता है परन्तु वो कर्तव्य होता नहीं , क्यूंकि पुण्य के बिना कर्तव्य समझ आता नहीं।
कुंती ने पाण्डु से सम्बन्ध होने से पहले जो कुछ भी अर्जित किया वो था कर्ण।
कर्ण आजीवन कुंती के पुत्रों से लड़ता रहा। वही पांडवों का सबसे भीषण शत्रु है।
विजातीय कर्म ही कर्ण है जो बंधनकारी है अर्थात इस में परम्परागत रूढ़ियों चित्रण ही कर्ण हैं
पूजा पद्धतियां पीछा नहीं छोड़ती जो की हमारे साथ पूर्वजों की सम्पति की तरह आती हैं पूर्वजों की संपत्ति तो आप बेच कर अन्यत्र जा सकते हैं पर दिमाग में बैठी रूढ़ियों से अलग नहीं हो सकते
योगेश्वर कृष्ण समझते हैं की पुण्य जागृत होने से मनुष्य में
धर्म रुपी युधिष्ठिर , अनुराग रूपी अर्जुन , भाव रूपी भीम , नियम रूपी नकुल तथा सत्संग रूपी सहदेव, सात्विकता रूपी सात्यिकी , तथा मानव काया में सामर्थ्य रूपी काशिराज इत्यादि आत्मा अथवा परमात्मा की ओर ले जाने वाली मानसिक प्रवृतियों का जन्म होता है जिनकी गणना सात अक्षौहिणी है।
अक्ष का अर्थ दृष्टि है सत्यमयी दृष्टिकोण का जिससे गठन है उसे दैवी सम्पद कहते हैं
अर्थात आत्मतत्व अथवा परमधर्म परमात्मा तक की दूरी तय करने के लिए ये सात सीढियाँ अथवा मनुष्य योनि की सात भूमिकाएं हैं न की कोई गणना है। वैसे ये प्रवृतिया अनंत हैं।
और योगेश्वर कृष्ण अंतःकरण के इस युद्ध में इन्हीं के साथ खड़े उनके मार्गदर्शक बने हैं।
शुक्रवार, 22 नवंबर 2019
बाबर की भारत में मौजूदगी क्यों नहीं चाहिए ?
बाबर की भारत में मौजूदगी क्यों नहीं चाहिए ?
एक दुर्दांत और वहशी शासन व्यवस्था का परिचायक है
परन्तु भारतीय मुसलमान को भी ये समझना आवश्यक है कि
उन्हें इस्लाम को बाबर से जोड़ कर नहीं
देखना चाहिए
क्यों ?
इसके लिए आप सबको मेरे इस ब्लॉग को पढ़ते रहें


बाबर तैमूर लंग के बाद का ६ शासक भारत में मुग़ल साम्राज्य का जनक लाखों हिन्दुओं को मारने तथा धर्म परिवर्तन करवाने वाली शासन व्यवस्था का जनक
आप को इन तीनों के बारे में तथा इनके बीच के सम्बन्ध में जानना आवश्यक है
न केवल हिन्दुओं के लिए बल्कि मुसलमानों के लिए भी
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