आस्तित्व के लिए जूझती मानवता
बेशक मानव प्रकृति की सबसे अच्छी कृति है पर आज एक छोटी सी प्रकृति की कृति की मार से अपने अस्तित्व को बचाने में जुटी है
इतिहास में सब कुछ दर्ज है
5000 वर्ष पूर्व मानव जाति ने एक विश्व युद्ध झेला था जिसके बाद आने वाली पीढ़ियों के लिए महामानव योगेश्वर श्रीकृष्ण ने युद्ध क्षेत्र में गीता का ज्ञान अर्जुन रूपी सशक्त योद्धा को देते हुए आने वाले समय का निर्णय सुना दिया था कि मानव जाति प्रकृति का सर्वश्रेष्ठ स्वरुप है और अगर मनुष्य मानव मूल्यों का अनुसरण नहीं करेगा तो उसे हर दिन कुरुक्षेत्र का सामना करना पड़ेगा
आज कोरोना विषाणु मानव जाति की भूल का ही नतीजा है
गीता सम्पूर्ण मानव जाति को जीने का दिशा निर्देश देती है
शायद ये महामारी हमें वास्तव में मनुष्य की प्रकृति में अपनी भूमिका को समझ कर भविष्य का निर्णय कर सके
विचार करें आज मनुष्य अपने बनाय माया भवनों में बैठे मौत से सहमें हैं और उसके विपरीत सभी अन्य जीव प्रकृति की गोद में स्वतंत्र घूम रहें है
जब जब भी मनुष्य प्रकृति के नियम का उल्लंघन करेगा तब तब प्रकृति अपने भीतर हलके से परिवर्तन से अपनी शक्ति का एहसास करवाएगी
अपने होने का कारण जाने ? आप हैं कौन ? आपकी आवश्यकता क्या है ?
अपने को पृथ्वी पर लकीरें खीच कर न बाँटें अंततः आप सब हो तो मनुष्य ही फिर चाहे रेखा के उस पार हो अथवा इस पार
याद रखें प्रकृति का नियम रेखा के उस पार भी वैसा ही है जैसा की इस पार