गौ माता
एक कड़वा सच
गौ जिसे भारतीय संस्कृति में माँ का दर्जा प्राप्त है उस माँ के जीवन के अंतिम क्षणों का सत्य गौशाला से निकलकर सड़कों में भटकना है। ये आज के तथाकथित सभ्य तथा विकसित समाज की संवेदनहीन मानसिकता को दर्शाता है। आज की भाग दौड़ और वर्चस्व के लिए समाज की दौड़ समाज संवेदनहीनता तथा संस्कारविहीनता को बढ़ा रही है
गौ का तो एकउदाहरण है वास्तव में मानव समाज की अवसरवादी सोच से केवल उस वस्तु का सम्मान करना सीख लिया है जिससे उसे व्यक्तिगत लाभ मिल सके अगर लाभ व्यक्तिगत नहीं है तो मानव उसे त्याग देने में जरा भी नहीं हिचकिचाता फिर चाहे गौ हो अथवा वृद्ध माँ बाप जिनकी उपयोगिता उन्हें महसूस नहीं होती
गौ भारतीय संस्कृति के अनुसार मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक तथा मृत्युपर्यन्त भी महत्त्व रखती है
अगर आप स्वयं को हिन्दू धर्म के अनुपालक मानते है
और
अगर नहीं तो गौ को माँ का दर्जा देना बंद करें